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सर्वकला संभूषण
गुंटुर शेषेन्द्र शर्मा द्वारा विरचित ‘षोडशी’ भारत के विमर्शात्मक साहित्य को वैश्विक वाङमय में स्थापित करने वाला अत्युत्तम ग्रंथ है । ‘षोडशी’ नाम स्वयं महामंत्र से जुड़ा हुआ है । इस नाम को देखकर ही कहा जा सकता है कि यह एक आध्यात्मिक उद्बोधनात्मक ग्रंथ है । वाल्मीकि रामायण के मर्म को आत्मसात करने के लिए कितना अधिक शास्त्रीय-ज्ञान की आवश्यकता है, यह इस ग्रंथ को पढ़ने से ही समझ में आता है । इतना ही नहीं वाल्मीकि रामायण की व्याख्या करने के लिए वैदिक वाङमय की कितनी गहरायी से जनकारी होनी चाहिए, यह सब इस ग्रंथ को देख कर समझा जा सकता है । इसीलिए तो शेषेन्द्र शर्मा के सामर्थ्य, गहन परीक्षण-दृष्टि एवं पांडित्यपूर्ण ज्ञान की प्रशंसा स्वयं कविसम्राट विश्वनाथ सत्यनारायण भी करते हैं, जो कि आप में अनुपम विषय है ।
कथा-संदर्भ, चरित्रों की मनोस्थिति, तत्कालीन समय, शास्त्रीय-ज्ञान, लौकिक-ज्ञान, भाषा पर पूर्ण अधिकार आदि की जानकारी के बिना वाल्मीकि रामायण के मर्म को समझ पाना कठिन कार्य है, कह कर बहुत ही स्पष्ट शब्दों में शेषेन्द्र शर्मा ने वाल्मीकि रामायण के महत्व को उद्घाटित किया है । इस संदर्भ में उनकी नेत्रातुरः विषयक परिचर्चा विशेष उल्लेखनीय है । इसी प्रकार सुंदरकांड नाम की विशिष्टता, कुंडलिनी योग, त्रिजटा स्वप्न में अभिवर्णित गायत्री मंत्र की महिमा, महाभारत को रामायण का प्रतिरूप मानना – इस प्रकार इस ग्रंथ में ऐसे कई विमर्शात्मक निबंध हैं जिनकी ओर अन्य लोगों का ध्यान नहीं गया है । वास्तव में यह भारतीय साहित्य का अपना सत्कर्म ही है कि उसे षोडशी जैसा अद्भत ग्रंथ मिला है ।
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मानवजाति के लिए परमौषधि हैं ‘वाल्मीकि रामायण’
रामायण महान ग्रंथ है । रामायण को पाठ्यांश में रूप में बच्चों को पढ़ाया जाता है । वयस्क लोग सीता-राम की जोड़ी को एक आदर्श दम्पत्ति के रूप में पूजते हैं । जहाँ तक पारायण की बात है, कहने की जरूरत ही नहीं, यह इसका पारायण असंख्य रूप से किया जाता है । क्या महर्षि वाल्मीकि रामायण को केवल एक सरल कथा के रूप में कह कर चुप रह गये थे ? नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं है । ये विचार हैं शेषेन्द्र शर्मा के ।
शेषेन्द्र शर्मा कहते हैं, वाल्मीकि के रामायण के गूढ़ अर्थ को आत्मसात करने के लिए शास्त्रीय-ज्ञान की आवश्यकता है । इसमें रहस्य रूप में छुपे ऋषि के मंतव्य को शास्त्रीय-ज्ञान के माध्यम से ही हासिल किया जा सकता है और यह ज्ञान सभी को आसानी से नहीं मिल पाता है । पर वे यह भी कहते हैं, ‘शास्त्र केवल पंडितों के पास ही होता है ऐसा मानना कुछ स्वार्थी पंडितों द्वारा प्रचारित शडयंत्र या साजिस है ।’ साहित्य और शास्त्र के प्रति इतनी स्पष्ट, ईमानदार एवं लोकतांत्रिक दृष्टि रखने वाले कवि एवं चिंतक शेषेन्द्र शर्मा ने रामायण में वाल्मीकि द्वारा गूढ़ रूप में व्यक्त किये गये रहस्यों को उद्घाटित कर जनमानस तक पहुँचाया है । शेषेन्द्र शर्मा कहते हैं अनुष्टप छंद में विरचित वाल्मीकि रामायण काव्य-औषधि पर चड़ाये गये मधु के समान है । यह ग्रंथ वेदों का रूपांतर है और महाभारत से पहले रचा गया अद्भुत ग्रंथ है । इस पुस्तक में शेषेन्द्र शर्मा की अंतर्मुखी-दृष्टि और परीक्षण-कौशल दोनो का परिचय स्पष्ट रूप से मिलता है । इतना ही नहीं, शेषेन्द्र शर्मा की प्रतिभा एवं पांडित्य की झलक इस पुस्तक के प्रत्येक पृष्ठ पर नज़र आती है ।
‘ऋतुघोष’ जैसे श्रेष्ठ कविता संग्रह में अभिव्यक्त शेषेन्द्र शर्मा काव्य-प्रतिभा और ‘मंडे सूर्युडु’ जैसे श्रेष्ठ गद्य-पुस्तक में प्रस्तुत उनके वैदिक-वाङमय के ज्ञान की जानकारी का परिचय वर्तमान समय की युवापीढ़ी को इस ग्रंथ के माध्यम से प्राप्त हो सकता है ।
Seshendra - Visionary Poet of the Millennium:
http://seshendrasharma.weebly.com/
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(मेरी धरती मेरे लोग, दहकता सूरज, गुरिल्ला, प्रेम पत्र, पानी हो बहगया,
समुंदर मेरा नाम, शेष-ज्योत्स्ना, खेतों की पुकार, मेरा मयुर)
समकालीन भारतीय और विश्व साहित्य के वरेण्य कवि शेषेन्द्र शर्मा का यह संपूर्ण काव्य संग्रह है। शेषेन्द्र शर्मा ने अपने जीवन काल में रचित समस्त कविता संकलनों को पर्वों में परिवर्तित करके एकत्रित करके “आधुनिक महाभारत'' नाम से प्रकाशित किया है। यह “मेरी धरती मेरे लोग'' नामक तेलुगु महाकाव्य का अनूदित संपूर्ण काव्य संग्रह है। सन् 2004 में “मेरी धरती मेरे लोग'' महाकाव्य नोबेल साहित्य पुरस्कार के लिए भारत वर्ष से नामित किया गया था। शेषेन्द्र भारत सरकार से राष्ट्रेन्दु विशिष्ट पुरस्कार और केन्द्र साहित्य अकादमी के फेलोषिप से सम्मानित किये गये हैं। इस संपूर्ण काव्य संग्रह का प्रकाशन वर्तमान साहित्य परिवेश में एक अपूर्व त्योंहार हैं।
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शेषेन्द्र शर्मा
20 अक्तूबर 1927 - 30 मई 2007
http://www.seshendrasharma.weebly.com
माता पिता : अम्मायम्मा, जी. सुब्रह्मण्यम
भाई बहन : अनसूया, देवसेना, राजशेखरम
धर्मपत्नि : श्रीमती जानकी शर्मा
संतान : वसुंधरा, रेवती (पुत्रियाँ), वनमाली सात्यकि (पुत्र)
बी.ए : आन्ध्रा क्रिस्टियन कालेज गुंटूर आं.प्र.
एल.एल.बी : मद्रास विश्वविद्यालय, मद्रास
नौकरी : डिप्यूटी मुनिसिपल कमीशनर (37 वर्ष) मुनिसिपल अड्मिनिस्ट्रेशन विभाग, आं.प्र.
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शेषेँद्र नाम से ख्यात शेषेँद्र शर्मा आधुनिक भारतीय कविता क्षेत्र में एक अनूठे शिखर हैं। आपका साहित्य कविता और काव्यशास्त्र का सर्वश्रेष्ठ संगम है। विविधता और गहराई में आपका दृष्टिकोण और आपका साहित्य भारतीय साहित्य जगत में आजतक अपरिचित है। कविता से काव्यशास्त्र तक, मंत्रशास्त्र से मार्क्सवाद तक आपकी रचनाएँ एक अनोखी प्रतिभा के साक्षी हैं। संस्कृत, तेलुगु और अंग्रेजी भाषाओं में आपकी गहन विद्वत्ता ने आपको बीसवीं सदी के तुलनात्मक साहित्य में शिखर समान साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित किया है। टी.एस. इलियट, आर्चबाल्ड मेक्लीश और शेषेन्द्र विश्व साहित्य और काव्यशास्त्र के त्रिमूर्ति हैं। अपनी चुनी हुई साहित्य विधा के प्रति आपकी निष्ठा और लेखन में विषय की गहराइयों तक पहुंचने की लगन ने शेषेँद्र को विश्व कविगण और बुद्धि जीवियों के परिवार का सदस्य बनाया है।
- संपर्क : सात्यकि S/o शेषेन्द्र शर्मा
saatyaki@gmail.com, +91 94410 70985, 77029 64402
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शेषेन्द्र इस युग का वाद्य और वादक दोनों हैं।
वह सिर्फ माध्यम नहीं
युग-चेतना का निर्माता कवि भी है।
- डॉ. विश्वम्भरनाथ उपाध्याय
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....इस महान् कवि का, अपने युग के इस प्रबल प्रमाण-पुरुष का युग-चेतना के इस दहकते सूरज का
हिन्दी के प्रांगण में, राष्ट्रभाषा के विस्तृत परिसर में
शिवात्मक अभिनन्दन होना ही चाहिए।
क्योंकि शेषेन्द्र की संवेदना मात्र 5 करोड तेलुगु भाषियों की नहीं, बल्कि पूरे 11 करोड भारतीयों की समूची संवेदना है।
- डॉ. केदारनाथ लाभ
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इस पुस्तकों के माध्यम से
विश्व
भारतीय आत्मा की धड़कन को महसूस कर सकेगा।
- डॉ. कैलाशचन्द्र भाटिया
शेषेन्द्र इस युग का वाद्य और वादक दोनों हैं। वह सिर्फ माध्यम नहीं, युग-चेतना का निर्माता कवि भी है। यह कैसे सम्भव हुआ है? यह इसलिए संभव हुआ है क्यों कि शेषेन्द्र शर्मा में एक नैसर्गिक प्रतिभा है। इस प्रतिभा के हीरे को शेषेन्द्र की बुद्धि ने, दीर्घकालीन अध्ययन और मनन से काट-छाँट कर सुघड़ बनाया है। शेषेन्द्र शर्मा आद्योपान्त (समन्तात) कवि हैं। भारत, अफ्रीका, चीन, सोवियत रूस, ग्रीस तथा यूरोप की सभ्यताओं और संस्कृतियों, साहित्य और कलों का शेषेन्द्र ने मंथन कर, उनके उत्कृष्ट तत्वों को आत्मसात कर लिया है और विभिन्न ज्ञानानुशासनों से उन्होंने अपनी मेघा को विद्युतीकृत कर, अपने को एक ऐसे संवेदनशील माध्यम के रूप में विकसित कर लिया है कि यह समकालीन युग, उनकी संवेदित चेतना के द्वारा अपने विवेक, अपने मानवप्रेम, अपने सौन्दर्यबोध और अपने मर्म को अभिव्यक्ति कर रहा है। विनियोजन की इस सूक्ष्म और जटिल प्रक्रिया और उससे उत्पन्न वेदना को कवि भली-भाँति जानता है। शेषेन्द्र शर्मा जैसे एक वयस्क कवि की रचानएँ पढ़ने को मिली.... एक ऋषि-व्यक्तित्व का साक्षात्कार हुआ। आप भी इस विकसित व्यक्तित्व के पीयूष का पान कीजिए और आगामी उषा के लिए हिल्लोलित हो जाइए।
- डॉ. विश्वम्भरनाथ उपाध्याय
अध्यक्ष, हिन्दी विभाग
राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपूर
श्रीहर्ष नाम से भारत देश में ख्यातिप्राप्त दो व्यक्ति हैं। एक राजा हैं। “नागानंदम्, प्रियदर्शिका रत्नावली” नामक ग्रंथों के रचयिता और बौद्धधर्म परापाती हैं। दूसरे श्रीविद्योपासक कवि और पंडित हैं। इन्होंने संस्कृत में नैषधीय काव्य का प्रणयन किया है। इसे "श्रृंगार नैषध” नाम से श्रीनाथ कवि सार्वभौम ने ईसा 15 वीं शताब्दि में तेलुगु में अनुवदित किया है। श्रीनाथ शैव हैं। लेकिन उनको शाक्तेय के संबंध में परिचय नहीं है यह कह भी नहीं सकते। परंतु श्रीहर्ष के नैषध में दमयन्ती श्रीदेवी हैं - इस रहस्य तक तो वे पहुँच नहीं पाये। इतने हजारों वर्षों से पीछे रह गये एक तात्त्विक रहस्य का पता एक अत्याधुनिक कवि शेषेन्द्र जी को कैसे मिला? यह आश्चर्य उत्पन्न करनेवाली बात है। अरविंद महर्षि को सावित्री मंत्र रहस्य का बोध हुआ। उसी को उन्होंने "सावित्री ए लेजेंड एण्ड ए सिंबल'' नामक अंग्रेजी ग्रंथ के रूप में अवतप्ति किया। इसी प्रकार शेषेन्द्र शर्मा द्वारा रचित ‘‘स्वर्ण हंस'' नैषध काव्य की तांत्रिक व्याख्या है। इसी प्रकार उन्हें “षोडशी'' में त्रिजटा स्वप्न में गायत्री मंत्र का रहस्य भी विदित हुआ। इससे यह स्पष्ट होता है कि गुंटूर शेषेन्द्र शर्मा जी एक निगूढयोगी हैं।
शेषेन्द्र शर्मा जी और मेरे बीच 60 वर्षों का सान्निहित्य है। सब लोग उनकी आधुनिक कविता संसार हो मुग्ध से उनकी ओर आकर्षित होते हैं, परंतु उनका ''स्वर्णहंस'' और ''षोडशी के रामायण रहस्य” पढनेवालों की संख्या कितनी है? पढकर भी उन्हें समझ पाने वाले कितने हैं?
चिरंजीवी सात्यकीने अब स्वर्णहंसालोकन करने की प्रार्थना की। सात्यकी महा पितृभक्ति परायण व्यक्ति हैं। इसीलिए अपने पिताजी के ग्रंथ बाहर पुनः प्रकाशित हो रहे हैं। अजपा गायत्री, चिंतामणी मंत्र साधकों के ध्यान के परे नहीं है। प्रधानतः श्रीविद्यिोपासक आज भी देश में बहुत हैं। कह नहीं सकते कि उन सब ने नैषध ग्रंथ पढा है। श्रीहर्ष श्रीविद्योपासक हैं - यह रहस्य अब श्री शेषेन्द्र शर्मा जी के द्वारा हमें प्राप्त हो रहा है।
- प्रो. मुदिगोंडा शिवप्रसाद
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समसामयिक भारतीय और विश्व साहित्य के वरेण्य विद्वान कवि शेषेन्द्र शर्मा के अत्यंत महत्वपूर्ण दार्शनिक शोध ग्रंथ हैं “षोडशी-रामायण के रहस्य” और “स्वर्णहंस" - श्रीहर्ष के नैषध काव्य का अनुशीलन। “स्वर्णहंस” का हिन्दी अनुवाद 1996 में प्रथम बार और “षोडशी : रामायण के रहस्य” का हिन्दी अनुवाद प्रथम बार 2006 में प्रकाशित हुए हैं।
दुर्भाग्यवश ये दोनों प्रथम संस्करण उस समय हिन्दी जगत के संस्कृत साहित्य के तथा दर्शन शास्त्र के विद्वानों को और विशेषज्ञों को नहीं पहुँचाये गये। समीक्षा के लिए हिन्दी साहित्यिक पत्रिकाओं को, दैनिक समाचार पत्रों को भी नहीं भेजे गये। फल स्वरूप लगभग दो-ढाई दशक पहले, हिन्दी अनुवाद प्रकाशित होकर भी न हुए जैसे छिपे पड़े रहे। ‘षोडशी-रामायण के रहस्य’ संशोधित द्वितीय संस्करण और स्वर्णहंस संशोधित द्वितीय संस्करण, शेषेन्द्र का परिचय और इन ग्रंथों के सक्षम परिचय इत्यादि के साथ अब हिन्दी साहित्य जगत के समक्ष हैं। इस अत्यंत कठिन कार्य को शेषेन्द्र के पुत्र सात्यकि ने अपनी भुजाओं पर लेकर विद्वानों के विशेष सहयोग से संपूर्ण करने में ठोस सफलता प्राप्त की है।
“षोडशी रामायण के रहस्य” में शेषेन्द्र जी ने वेद ऋषि वाल्मीकि के हृदय का अनावरण किया है। अनगिनत युगों से जड़े जमाई धारणाओं के विरुद्ध विद्रोह है यह रचना ! उनसे पूर्णतः हट कर है। इस दृष्टि से यह निस्संदेह एक क्रांतिकारी दार्शनिक रचना है। शेषेन्द्र जी का दृढ़ निश्यच है कि अत्यंत मनलुभावनी कविता में राम कथा कहते हुए उसके हृदय में वाल्मीकि ने कुण्डलिनी योग को रहस्य रूप से छुपाया है। ताकि कविता सेवन करने के मोह में जाने-अनजाने ही पाठक साधक बन जायें तथा कुण्डलिनी योग का असीम लाभ पायें। इसी परिवेश में शेषेन्द्र जी "सुंदरकाण्ड कुण्डलिनी योग है'', “त्रिजटा स्वप्न गायत्री मंत्र ही है'' इत्यादि दृढ़ निश्चयों को स्मृति और वेद के आधार पर सिद्ध करते हैं।
वाल्मीकि से कालिदास पर्यन्त समस्त संस्कृत साहित्य ध्वनि प्रधान है। महाकवि शेषेन्द्र का दृढ विश्वास है कि संस्कृत नैषधान्तर्गत ध्वनि को 15 वीं शती के महाकवि श्रीनाथ ने तेलुगु अनुवाद में छोड़ दिया है। इस से तेलुगु भाषियों तक जो संदेश पहुँच नहीं सका उसे महाकवि शेषेन्द्र शर्मा ने अपने अनुशीलन से “स्वर्ण हंस” द्वारा संपन्न किया है। स्वर्णहंस ने एक महत्वपूर्ण रचना के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की है। यह अंग्रेजी में भी “द गोल्डन स्वान'' के रूप में अनूदित है।
श्रीहर्ष का नैषध “विद्वदौषध'' कैसे बना है? - ध्वनि मंथन के कारण। 800 वर्षों से छिपे महारहस्य था - दमयंती श्रीमहात्रिपुरसुंदरी ही है। इसी का विवेचन शेषेन्द्र ने इस रचना में किया है और आविष्कार भी।
शेषेन्द्र ने स्पष्ट किया है कि श्रीहर्ष श्रीविद्योपासक हैं। व्यास के भारतांतर्गत नल-दमयंती वृत्त को तरास कर मंत्रयोग और वेदांत रहस्यों को श्रीहर्ष ने उसमें निक्षिप्त किया है और आश्चर्यजनक रीति से अपने विवेचन से आविष्कृत भी किया है।
“षोडशी” में रामायणांतर्गत सुंदरकाण्ड के श्लोंकों में छिपे कुण्डलिनी योग परक रहस्य को खोल कर सीता को पराशक्ति के रूप में निरूपित करनेवाले भी श्री शेषेन्द्र जी ही हैं। उन्होंने ही नैषध के हंस को जीवात्मा, परमात्मा और अजपा गायत्री के प्रतीक के रूप में विश्लेषित कर दमयंती को श्रीमहात्रिपुरसुंदरी ही निरूपित किया है।
शेषेन्द्र जी की “षोडशी” के अंतर्गत “वाल्मीकि” के शब्द और वाल्मीकि की विचित्रताएँ एवं “स्वर्णहंस” का ध्वनि मंथन एक ही पथ पर चलनेवाली स्तरीय अभिव्यक्तियाँ हैं। कविता का अनुशीलन एवं कवित्व सिद्धांत के विषय में शेषेन्द्र जी का अध्ययन और उनकी सोच इस ग्रंथ में हर जगह परिव्याप्त है। आचार्य शिव प्रसाद कहते है की जिस प्रकार श्री अरविंद ने सावित्री मंत्र को मथ कर “सावित्री: ए लेजेंड एण्ड ए सिंबल” ग्रंथ की रचना की है उसी प्रकार शेषेन्द्र ने अजपा गायत्री, चिंतामणि तिस्करिणी मंत्र रहस्यों का दर्शन कर “स्वर्णहंस” का सृजन किया है।
आशा है विद्वान, अनुसंधाता और साहित्य के प्रशंसक अवश्य इसका स्वागत करेंगे।
- डॉ. बी. वाणी
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Seshendra : Visionary Poet of the Millenium
http:// seshendrasharma.weebly.com
...जीवन के आरम्भ में वह अपनी माटी और मनुष्य से जुड़े हुए रहे हैं।
उसकी तीव्र ग्रन्ध आज भी स्मृति में है जो कि उनकी कविता
और उनके चिन्तन में मुखर होती रहती है।
वैसे इतना मैं जानता हूँ कि शेषेन्द्र का कवि और
विचारक आज के माटीय और मानवीय उत्स से
वैचारिक तथा रचनात्मक स्तर के
साथ-साथ क्रियात्मक स्तर पर भी जुड़ते रहे हैं
और इसका बाह्य प्रमाण उनका ‘कवि-सेना' वाला आन्दोलन है।
यह काव्यात्मक आन्दोलन इस अर्थ में चकित कर देने वाला है
कि सारे सामाजिक वैषम्य, वर्गीय-चेतना, आर्थिक शोषण की
विरूपता-वाली राजनीति को रेखांकित करती हुए भी
शेषेन्द्र उसे काव्यात्मक आन्दोलन बनाये रख सके।
मैं नहीं जानता कि काव्य का ऐसा आन्दोलनात्मक पक्ष
किसी अन्य भारतीय भाषा में है या नहीं,
पर हिन्दी में तो नहीं ही है और इसे हिन्दी में आना चाहिए।
- नरेश मेहता
कवि उपन्यासकार, समालोचक
ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता
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• शेषेन्द्र शर्मा आधुनिक युग के जाने-माने विशिष्ट और बहचर्चित महाकवि हैं। प्राचीन भारतीय काव्यशास्त्र, पाश्चात्य काव्यशास्त्र, आधुनिक पाश्चात्य काव्य सिद्धान्त एवं मार्क्सवादी काव्य सिद्धान्त - इन चारों रचना क्षेत्रों के संबन्ध में सोच-समझकर साहित्य निर्माण की दिशा में कलम चलानेवाले स्वप्न द्रष्टा हैं।
• यह मेनिफेस्टो शेषेन्द्र की उपलब्धियों को दर्शाता है। यह पूर्व, पश्चिम और मार्क्सवादी काव्यदर्शनों का सम्यक तुलनात्मक अनुशीलन प्रस्तुत करता है। इसी कारण से शेषेन्द्र सुविख्यात हुए हैं।
• यह मेनिफेस्टो साहित्य के विद्यार्थियों के लिए दिशा निर्देशक और काव्यशास्त्र के शिक्षकों के लिए मार्गदर्शक है। यह तुलनात्मक दृष्टि से काव्यशास्त्र विज्ञान के अनुशीलन का रास्ता प्रशस्त करता है और उस दिशा में काव्यशास्त्रीय विज्ञान के तुलनात्मक अध्ययन को विद्वत जनों के लिए सुगम बनाता भी है।
• 'कविसेना' एक बौद्धिक आन्दोलन है। नए मस्तिष्कों को नवीन मार्ग का निर्देश करता है और सत्य की शक्ति को नई पीढ़ी द्वारा हासिल करने का मार्ग प्रशस्त करता है। मेनिफेस्टो कविता में सामान्य शब्द को चुम्बकीय शक्ति से अनुप्राणित कर ग्रहण करने की पद्धति का प्रशिक्षण प्रदान करता है। इससे सामान्य शब्द साहित्य को एक हथियार (अस्त्र) बनाता है। समस्या एवं प्रगति प्रशस्त होती हैं। शायद भारत में यह पहली बार संभव हो रहा है। कवि अपनी कलम अपने समय के लिए उठा रहा है। इससे उनकी प्रज्ञा का प्रभाव इस देश की जनता के जीवन को उच्चतम चोटी को छू लेने और समस्याओं को सुलझाने की दिशा में मार्गदर्शक हुआ है।
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- कविता भाव चमत्कार और अर्थ चमत्कार भाव वैचित्रि और अर्थ वैचित्रि है।
- शब्दों की हेराफेरी शब्दों का सर्कस कविता नहीं है।
- कविता एक जीवनशैली है - रोजीरोटी का साधन नहीं।
- कविता एक आत्म कला है - अभूत कल्पना नहीं।
- विशिष्ट भाव और विशिष्ट भाषा अपने रक्त में बहता हुआ असाधारण वाक्य ही कविता है।
- कविता एक मंदिर है - शब्दों और भावों को यहाँ तक कि भगवान को भी स्नान कर उसमें कदम रखना चाहिए।
- जिस प्रकार गद्य में ‘क्या कहा गया है’ महत्मपूर्ण होता है, उसी प्रकार कविता में ‘कैसे कहा गया है’ महत्वपूर्ण है।
- सामाजिक चेतना को साहित्यिक चेतना में परिवर्तित करनेकी क्षमता चाहिए कवि को।
- जीवन की समस्त सामग्री को साहित्यिक सामग्री में परिवर्तित करने की कलात्मक प्रक्रिया-साहित्यिक चेतना चाहिए कवि में।
- समाज में सिर उठाई संस्कृतियाँ और सभ्यताएँ कवियों के निरंतर परिश्रम का अनमोल धरोहर है।
- कवियों का असीम परिश्रम सभ्यता को सजीव रखता आया है।
- कवि का कंठ एक शाश्वत नैतिक शंखध्वनी है।
- कवि चलता फिरता मानवता का संक्षिप्त शब्द चित्र है।
- शेषेन्द्रSeshendra Sharma Hindi Books
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