Keep and Share logo     Log In  |  Mobile View  |  Help  
 
Visiting
 
Select a Color
   
 
Golden Swan, Swarna Hamsa , Swarn Hans ( English , Telugu , Hindi ) Seshendra Sharma

Creation date: Nov 29, -0001 4:07pm     Last modified date: Feb 3, 2020 2:13am   Last visit date: Apr 14, 2024 12:32pm
1 / 20 posts
Feb 3, 2020  ( 1 post )  
2/3/2020
2:13am
Saatyaki S/o Seshendra Sharma (seshendra)

photophotophoto

Seshendra Sharma Books


• A Great secret hidden for eight centuries
• The swan has been telling her story for 800 years but no one has identified who she is....
• Naishdha Kavya a trinity of Mantra, Yoga Vedantha Sciences
• Sriharsha a Srividya Upasaka
• Damayanthi is none other than Sri Maha Tripurasundari
• Ajapaa Gayathri Chinthamani Thiraskarani mantras treasured in this kavya....

*****

Two Great Peaks in the world literary criticism and research

Shodasi: Secrets of The Ramayana and Swarnahamsa Harshanaishada from the mighty pen of the great Telugu poet, Gunturu Seshendra Sharma are considered to be the two great peaks in the world literary criticism and research. This is a truth most contemporary Telugu writers and readers aren’t aware of. The way Seshendra could discover Kundalini Yoga, Gayathri Mantra in Shodasi, he could discern the treasure trove of mantra yoga, Sri Mahatripurasundari, Chintamani mantra in Swarnahamsa.

At a time when our universities which are mere Degrees production Units, churn out “solid waste” in the name of research; Seshendra even while attending to his job as a Municipal Commissioner created research oriented critical volumes like a sage.

Though Shodasi was published in 1967 and Swarnahamsa in 1968; Swarnahamsa was created by him much before Shodasi was conceived. The concepts that Srinatha, Nannayya and Mallanatha, the Telugu Classical poets couldn’t decipher, Seshendra could. He humbly submits that he is most fortunate that the triumvirate had left behind some pertinent concepts only to be discovered by him at a later stage.

These two great kavyas were serialised under the editorship of late Neelamraju Venkata Seshaiah in Andhra Prabha Daily, Sunday Literary Supplements from 1963 to 1967 and Seshendra’s poems and non-fiction were published in the book forms (6) only after they appeared in serial form in Andhra Prabha.

Seshendra : Visionary Poet of the Millennium

http://seshendrasharma.weebly.com

*****

Saatyaki , Seshendra's son's New Year Gift to Devi Upasakas

--------------

श्रीविद्योपासक शेषन्द्र एक स्वर्ण हंस

श्रीहर्ष नाम से भारत देश में ख्यातिप्राप्त दो व्यक्ति हैं। एक राजा हैं। “नागानंदम्, प्रियदर्शिका रत्नावली” नामक ग्रंथों के रचयिता और बौद्धधर्म परापाती हैं। दूसरे श्रीविद्योपासक कवि और पंडित हैं। इन्होंने संस्कृत में नैषधीय काव्य का प्रणयन किया है। इसे "श्रृंगार नैषध” नाम से श्रीनाथ कवि सार्वभौम ने ईसा 15 वीं शताब्दि में तेलुगु में अनुवदित किया है। श्रीनाथ शैव हैं। लेकिन उनको शाक्तेय के संबंध में परिचय नहीं है यह कह भी नहीं सकते। परंतु श्रीहर्ष के नैषध में दमयन्ती श्रीदेवी हैं - इस रहस्य तक तो वे पहुँच नहीं पाये। इतने हजारों वर्षों से पीछे रह गये एक तात्त्विक रहस्य का पता एक अत्याधुनिक कवि शेषेन्द्र जी को कैसे मिला? यह आश्चर्य उत्पन्न करनेवाली बात है। अरविंद महर्षि को सावित्री मंत्र रहस्य का बोध हुआ। उसी को उन्होंने "सावित्री ए लेजेंड एण्ड ए सिंबल'' नामक अंग्रेजी ग्रंथ के रूप में अवतप्ति किया। इसी प्रकार शेषेन्द्र शर्मा द्वारा रचित ‘‘स्वर्ण हंस'' नैषध काव्य की तांत्रिक व्याख्या है। इसी प्रकार उन्हें “षोडशी'' में त्रिजटा स्वप्न में गायत्री मंत्र का रहस्य भी विदित हुआ। इससे यह स्पष्ट होता है कि गुंटूर शेषेन्द्र शर्मा जी एक निगूढयोगी हैं।

शेषेन्द्र शर्मा जी और मेरे बीच 60 वर्षों का सान्निहित्य है। सब लोग उनकी आधुनिक कविता संसार हो मुग्ध से उनकी ओर आकर्षित होते हैं, परंतु उनका ''स्वर्णहंस'' और ''षोडशी के रामायण रहस्य” पढनेवालों की संख्या कितनी है? पढकर भी उन्हें समझ पाने वाले कितने हैं?

चिरंजीवी सात्यकीने अब स्वर्णहंसालोकन करने की प्रार्थना की। सात्यकी महा पितृभक्ति परायण व्यक्ति हैं। इसीलिए अपने पिताजी के ग्रंथ बाहर पुनः प्रकाशित हो रहे हैं। अजपा गायत्री, चिंतामणी मंत्र साधकों के ध्यान के परे नहीं है। प्रधानतः श्रीविद्यिोपासक आज भी देश में बहुत हैं। कह नहीं सकते कि उन सब ने नैषध ग्रंथ पढा है। श्रीहर्ष श्रीविद्योपासक हैं - यह रहस्य अब श्री शेषेन्द्र शर्मा जी के द्वारा हमें प्राप्त हो रहा है।

- प्रो. मुदिगोंडा शिवप्रसाद

*****

प्रकाशकीय

समसामयिक भारतीय और विश्व साहित्य के वरेण्य विद्वान कवि शेषेन्द्र शर्मा के अत्यंत महत्वपूर्ण दार्शनिक शोध ग्रंथ हैं “षोडशी-रामायण के रहस्य” और “स्वर्णहंस" - श्रीहर्ष के नैषध काव्य का अनुशीलन। “स्वर्णहंस” का हिन्दी अनुवाद 1996 में प्रथम बार और “षोडशी : रामायण के रहस्य” का हिन्दी अनुवाद प्रथम बार 2006 में प्रकाशित हुए हैं।

दुर्भाग्यवश ये दोनों प्रथम संस्करण उस समय हिन्दी जगत के संस्कृत साहित्य के तथा दर्शन शास्त्र के विद्वानों को और विशेषज्ञों को नहीं पहुँचाये गये। समीक्षा के लिए हिन्दी साहित्यिक पत्रिकाओं को, दैनिक समाचार पत्रों को भी नहीं भेजे गये। फल स्वरूप लगभग दो-ढाई दशक पहले, हिन्दी अनुवाद प्रकाशित होकर भी न हुए जैसे छिपे पड़े रहे। ‘षोडशी-रामायण के रहस्य’ संशोधित द्वितीय संस्करण और स्वर्णहंस संशोधित द्वितीय संस्करण, शेषेन्द्र का परिचय और इन ग्रंथों के सक्षम परिचय इत्यादि के साथ अब हिन्दी साहित्य जगत के समक्ष हैं। इस अत्यंत कठिन कार्य को शेषेन्द्र के पुत्र सात्यकि ने अपनी भुजाओं पर लेकर विद्वानों के विशेष सहयोग से संपूर्ण करने में ठोस सफलता प्राप्त की है।

“षोडशी रामायण के रहस्य” में शेषेन्द्र जी ने वेद ऋषि वाल्मीकि के हृदय का अनावरण किया है। अनगिनत युगों से जड़े जमाई धारणाओं के विरुद्ध विद्रोह है यह रचना ! उनसे पूर्णतः हट कर है। इस दृष्टि से यह निस्संदेह एक क्रांतिकारी दार्शनिक रचना है। शेषेन्द्र जी का दृढ़ निश्यच है कि अत्यंत मनलुभावनी कविता में राम कथा कहते हुए उसके हृदय में वाल्मीकि ने कुण्डलिनी योग को रहस्य रूप से छुपाया है। ताकि कविता सेवन करने के मोह में जाने-अनजाने ही पाठक साधक बन जायें तथा कुण्डलिनी योग का असीम लाभ पायें। इसी परिवेश में शेषेन्द्र जी "सुंदरकाण्ड कुण्डलिनी योग है'', “त्रिजटा स्वप्न गायत्री मंत्र ही है'' इत्यादि दृढ़ निश्चयों को स्मृति और वेद के आधार पर सिद्ध करते हैं।

वाल्मीकि से कालिदास पर्यन्त समस्त संस्कृत साहित्य ध्वनि प्रधान है। महाकवि शेषेन्द्र का दृढ विश्वास है कि संस्कृत नैषधान्तर्गत ध्वनि को 15 वीं शती के महाकवि श्रीनाथ ने तेलुगु अनुवाद में छोड़ दिया है। इस से तेलुगु भाषियों तक जो संदेश पहुँच नहीं सका उसे महाकवि शेषेन्द्र शर्मा ने अपने अनुशीलन से “स्वर्ण हंस” द्वारा संपन्न किया है। स्वर्णहंस ने एक महत्वपूर्ण रचना के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की है। यह अंग्रेजी में भी “द गोल्डन स्वान'' के रूप में अनूदित है।

श्रीहर्ष का नैषध “विद्वदौषध'' कैसे बना है? - ध्वनि मंथन के कारण। 800 वर्षों से छिपे महारहस्य था - दमयंती श्रीमहात्रिपुरसुंदरी ही है। इसी का विवेचन शेषेन्द्र ने इस रचना में किया है और आविष्कार भी।

शेषेन्द्र ने स्पष्ट किया है कि श्रीहर्ष श्रीविद्योपासक हैं। व्यास के भारतांतर्गत नल-दमयंती वृत्त को तरास कर मंत्रयोग और वेदांत रहस्यों को श्रीहर्ष ने उसमें निक्षिप्त किया है और आश्चर्यजनक रीति से अपने विवेचन से आविष्कृत भी किया है।

“षोडशी” में रामायणांतर्गत सुंदरकाण्ड के श्लोंकों में छिपे कुण्डलिनी योग परक रहस्य को खोल कर सीता को पराशक्ति के रूप में निरूपित करनेवाले भी श्री शेषेन्द्र जी ही हैं। उन्होंने ही नैषध के हंस को जीवात्मा, परमात्मा और अजपा गायत्री के प्रतीक के रूप में विश्लेषित कर दमयंती को श्रीमहात्रिपुरसुंदरी ही निरूपित किया है।

शेषेन्द्र जी की “षोडशी” के अंतर्गत “वाल्मीकि” के शब्द और वाल्मीकि की विचित्रताएँ एवं “स्वर्णहंस” का ध्वनि मंथन एक ही पथ पर चलनेवाली स्तरीय अभिव्यक्तियाँ हैं। कविता का अनुशीलन एवं कवित्व सिद्धांत के विषय में शेषेन्द्र जी का अध्ययन और उनकी सोच इस ग्रंथ में हर जगह परिव्याप्त है। आचार्य शिव प्रसाद कहते है की जिस प्रकार श्री अरविंद ने सावित्री मंत्र को मथ कर “सावित्री: ए लेजेंड एण्ड ए सिंबल” ग्रंथ की रचना की है उसी प्रकार शेषेन्द्र ने अजपा गायत्री, चिंतामणि तिस्करिणी मंत्र रहस्यों का दर्शन कर “स्वर्णहंस” का सृजन किया है।

आशा है विद्वान, अनुसंधाता और साहित्य के प्रशंसक अवश्य इसका स्वागत करेंगे।

- डॉ. बी. वाणी

 

------------------


హంస ఆకాశమునపోవుచు
ఒక కుండను ఒక పండును
ఒక కొండను చూచెనట!
దమయంతి, శ్రీ:, చంద్రకళ
ఒక్కటేనట!

- శేషేంద్ర

*****


- సంస్కృతంలోని హర్షనైషధ కావ్యంలో ఎనిమిది శతాబ్దాల నుండి మరుగున పడిఉన్న మహారహస్యం
- 800 ఏళ్ళ నుంచి హంస తన కథ వినిపిస్తున్నా ఎవరూ గుర్తించలేదు
- శ్రీ హర్షుడు శ్రీ విద్యోపాసకుడు
- హర్ష నైషధం మంత్రయోగ వేదాంత శాస్త్ర సంపుటి
- దమయంతి దమయంతి కాదు శ్రీ మహా త్రిపురసుందరి
- ఈ కావ్యంలో నిక్షిప్తమై ఉన్న అజపా గాయత్రి, చింతామణి, తిరస్కరిణి మంత్రాలు
- “అవామావామార్థే” గర్భంలో రత్నరాసులు దాచుకున్న సముద్రంలాంటి శ్లోకం

*****

 

ప్రప్రంచ సాహిత్య విమర్శలో, పరిశోధనలో రెండు మహోన్నత శిఖరాలు

 

మహాకవి శేషేంద్ర విరచిత షోడశి రామాయణ రహస్యములు, స్వర్ణహంస హర్షనైషద కావ్య పరిశీలన ప్రపంచ సాహితీ విమర్శలో రెండు మహోన్నత శిఖరాలు. సమకాలీన తెలుగు సాహిత్య ప్రజానీకానికి ముఖ్యంగా నేటి తరానికి తెలియని సత్యమిది. వాల్మీకి రామాయణంలో కుండలినీ యోగం, గాయత్రీమంత్రం తదితరాలు సాక్ష్యాత్కరించినట్లే శేషేంద్రకు హర్షుడి నైషధంలో మంత్రయోగ తంత్ర సంపుటి, శ్రీ మహాత్రిపుర సుందరి, చింతామణి తిరస్కరిణి మంత్రాలు సాక్ష్యాత్కరించాయి.

డిగ్రీల ఉత్పత్తి కేంద్రాలయిన మన విశ్వవిద్యాలయాలు రీసెర్చ్‌ పేరుతో టన్నుల కొద్దీ ‘‘సాలిడ్‌ వేస్ట్‌’’ కుమ్మరిస్తుండగా శేషేంద్ర మున్సిపల్‌ కమీషనర్‌ నౌకరీ చేస్తూనే ఋషిగా దార్శినిక పరిశోధనాత్మకత విమర్శ గ్రంథాలు సృజించారు.

ప్రచురణ రీత్యా షోడశి (1967) స్వర్ణహంస (1968) వెలువడ్డా రచనాకాలం దృష్ట్యా స్వర్ణహంస తొలికావ్యం. నన్నయ్య, శ్రీనాథ, మల్లినాథులకు దొరకని రహస్యాలు శేషేంద్రకు సాక్ష్యాత్కరించాయి. ఈ మహనీయత్రయం నైషథంలోని రహస్యాలను తనకు విడిచిపెట్టి వెళ్లడం తన పూర్వజన్మ పుణ్యఫలమని అంటారు శేషేంద్ర వినమ్రంగా.

"ఈ రెండు మహా కావ్యాలు, ఆనాడు కీ.శే. నీలంరాజు వెంకటశేషయ్య గారి సంపాదకత్వంలోని ఆంధ్రప్రభ దినపత్రికలో 1963 నుంచి 1966 వరకూ ధారావాహికంగా, ఆదివారం సాహిత్యనుబంధంలో వెలువడ్డాయి. శేషేంద్ర పద్య, గద్య కావ్యాలన్నీ కూడా (సుమారు 6 పుస్తకాలు ) ప్రభలో వెలువడ్డ తరువాతే పుస్తక రూపంలో ప్రచురితమయ్యాయి".

తొలిముద్రణ 1968లో, రెండవముద్రణ 1999లోనూ జరుపుకున్న ఈ "స్వర్ణ హంస" కావ్యం మూడవ ముద్రణ ఈ-బుక్‌ రూపంలో మహిషాసురమర్ధిని ఆశీస్సులుతో శేషేంద్ర కుమారుడు సాత్యకి మనకి అందిస్తున్నారు.